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गौरैया को देखकर, होता यह आभास

मुक्तक
गौरैया को देखकर, होता  यह  आभास,
लगी प्यास इसको बहुत,इससे दिखे उदास।
पानी की दरकार है,चहुँ-दिश नीर-अभाव,
सूरज ऊपर तप रहा, कैसे  मिले  उजास??

पर्यावरण-सुधार से, जल-संकट हो दूर,
वन-संरक्षण से सुनो, होते  ग़म  काफ़ूर।
तरु-कटान की रोक से,रहे न संकट नीर,
जल जीवन है जीव का,जल दुनिया का नूर।।

पशु-पक्षी-मानव सभी,विविध प्रकृति के अंग,
रहें सुरक्षित ये तभी, नियम  नहीं  जब  भंग।
छेड़छाड़ क़ुदरत कभी, करे  नहीं  बर्दाश्त,
प्रकृति-प्रेम यदि हम रखें,कभी न बिगड़े रंग।।
             ©डॉ0हरि नाथ मिश्र
                 9919446372

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2 Comments

अनुपम रचना 👌👌

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Sachin dev

21-Mar-2023 10:26 AM

Nice

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